संस्कृत भारत की एक शास्त्रीय भाषा है। यह दुनिया की सबसे पुरानी उल्लिखित भाषाओं में से एक है।

हिन्दू धर्म के लगभग सभी धर्मग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही लिखे हुए हैं। आज भी हिन्दू धर्म के यज्ञ और पूजा संस्कृत भाषा में ही होते हैं।

Big Brother Ravi Pratap Singh

संस्कृतस्य सम्मानं, भारतस्योत्थानम्। संस्कृतशास्त्र मानवमस्तिष्क को परमसत्य के स्थापनयोग्य बनाते हैं।

Me Ravinder Goel and Chiranjeet Sir

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Lav Tiwari and Kush Tiwari Live Performance at Chhat Mahotsav in Noida

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Me and Noida MLA Smt Vimla Batham

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Saturday, 13 August 2016

धर्म क्या है ?

धर्म क्या है ?
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लोग मानते हैं कि मेरा धर्म #हिन्दू है, वो इस्लाम धर्म को मानता है,
उसने इसी धर्म आपनाया है, वो सिख है ,
वो जैन, बौद्ध और न जाने कितने धर्म होंगे पूरी दुनिया में !
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#धर्म क्या है?
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अगर उपरोक्त सभी धर्म है तो .....
इस्लाम के प्रवर्तक - मुहम्मद साहब
इसाई के प्रवर्तक - प्रभु यीशु
बौद्ध धर्म - महात्मा बुद्ध
जैन धर्म - महावीर स्वामी
सिख धर्म - गुरु नानक देव
हिन्दू धर्म - ??????????
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यही पर बात अटकती है , अगर हिन्दू भी धर्म होता तो उसका भी कोई न कोई प्रवर्तक होना चाहिए था न......
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प्रश्न अभी भी मेरे मन में वही है-----
धर्म क्या है???????
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अगर पहले कहे हुए सभी धर्म हैं तो .
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इस्लाम - क़ुरान
इसाई - बाइबल
बुद्ध - उपदेश भगवान् बुद्ध के
जैन - ..... किताब
सिख - गुरु ग्रन्थ साहिब
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हिन्दू - { गीता, वेद, उपनिषद , रामचरितमानस और हज़ारों पुस्तकें ...}

यहाँ भी हिन्दू किसी भी धर्म से अलग प्रतीत होता है !
अगर यह एक धर्म मात्र है तो इसकी भी कोई एक पुस्तक होनी चाहिए थी !
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प्रश्न अभी भी मेरे मन में वही है---
आखिर धर्मं क्या है????
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अगर पहलेवाले सभी धर्मं हैं तो
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इस्लाम - अल्लाह को नमाज़ अदा करता है
इसाई - प्रभु यीशु को प्रे करता है
बौद्ध - भगवान् बुद्ध को
जैन - महावीर स्वामी को
सिख - गुरु .... को
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हिन्दू - शिव , विष्णु , ब्रम्हा , गणेश, राम, कृष्ण , ...... हजारों हैं ....
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अगर हिन्दू सिर्फ धर्म है तो ये बाकि धर्मों से अलग क्यों हैं.......
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प्रश्न मेरा अभी भी वही है--
आखिर धर्म क्या है?
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अगर पहलेवाले सभी धर्म हैं तो
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इस्लाम - धर्म परिवर्तन को मानता है
इसाई - धर्म परिवर्तन को मानता है
बौद्ध - धर्म परिवर्तन को मानता है
जैन - धर्म परिवर्तन को मानता है
सिख - धर्म परिवर्तन को मानता है
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हिन्दू - इतिहास गवाह है की हिन्दू में कही भी धर्म परिवर्तन को नै कहा गया है ,
क्योंकि लोग जन्म से हिन्दू होते हैं और मरते दम तक हिन्दू ही रहते हैं
या यूँ कहें लोग मरने के बाद भी हिन्दू ही रहते हैं!
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प्रश्न अभी भी मेरे मन में वाही है--
धर्मं क्या है?
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अगर उपरोक्त सभी धरम है तो हिन्दू कोई धर्म मात्र नै है !
हिन्दू एक सभ्यता है , जिसने हजारों सालों से विभिन्न धर्मों का श्रृजन तथा पालन पोषण किया है और श्रृष्टि के अंत तक करता रहेगा !
कुछ लोग आपने राजनीतिक फायदे के लिए वर्षों से धर्मों को बदनाम करते आ रहे हैं , लड़ाते आ रहे हैं दो धर्मो को !
इन बातों का कोई औचित्य ही नै बनता है !
मेरे हिसाब से धर्म वो है जिसके कारन अशोक ने अपने भाइयों को काट डाला था !
धर्म वो है जिसके कारण अकबर ने आपने ही भाइयों के खून की नदियाँ बहाई थी !
इनलोगों का एक ही धर्म था - राष्ट्रधर्म !!
अंततः
धर्म के नाम पर लड़नेवालों से मेरा अनुरोध है की वो सिर्फ एक धर्म का पालन करें - राष्ट्रधर्म !
बाकि सभी धर्म मंदिर में, मस्जिद में , चर्च में, ही अच्छे लगते हैं ! जीवन में इनपर लड़ना व्यर्थ है



!
जो लोग मेरी बात से सहमत हैं कृपया आपने सुझाव अवश्य दें !!!
जय हिंद !
जाही भारत !!
वन्दे मातरम !!

Sunday, 3 July 2016

संकट काल में भी धैर्य का त्याग नहीं करना चाहिए

त्याज्यं न धैर्यं विधुरेऽपि काले
धैर्यात् कदाचिद्गतिमाप्नुयात् सः।
यथा समुद्रेऽपि च पोतभङ्गे
तां यात्रिको वाञ्छति तर्तुमेव।।
संकट काल में भी धैर्य का त्याग नहीं करना चाहिए।
कदाचित् धैर्य से उसे सफलता मिले।
समंदर में, नौका टूट जाने पर भी यान्त्रिक
तैरने की इच्छा रखता है।
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Friday, 1 July 2016

त्याज्यं न धैर्यं विधुरेऽपि काले धैर्यात् कदाचिद्गतिमाप्नुयात् सः। यथा समुद्रेऽपि च पोतभङ्गे तां यात्रिको वाञ्छति तर्तुमेव।।

त्याज्यं न धैर्यं विधुरेऽपि काले
धैर्यात् कदाचिद्गतिमाप्नुयात् सः।
यथा समुद्रेऽपि च पोतभङ्गे
तां यात्रिको वाञ्छति तर्तुमेव।।

संकट काल में भी धैर्य का त्याग नहीं करना चाहिए।
कदाचित् धैर्य से उसे सफलता मिले।
समंदर में, नौका टूट जाने पर भी यान्त्रिक
तैरने की इच्छा रखता है।


संस्कृत भाषा क्या है

संस्कृत भारत की एक शास्त्रीय भाषा है। यह दुनिया की सबसे पुरानी उल्लिखित भाषाओं में से एक है। संस्कृत हिन्दी-यूरोपीय भाषा परिवार की मुख्य शाखा हिन्दी-ईरानी भाषा की हिन्दी-आर्य उपशाखा की मुख्य भाषा है। आधुनिक भारतीय भाषाएँहिन्दीमराठीसिन्धीपंजाबी, बंगला, उड़ियानेपालीकश्मीरीउर्दू आदि सभी भाषाएं इसी से उत्पन्न हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है।

विशेषताएँ

  • हिन्दू धर्म के लगभग सभी धर्मग्रन्थ संस्कृत भाषा में ही लिखे हुए हैं। आज भी हिन्दू धर्म के यज्ञ और पूजा संस्कृत भाषा में ही होते हैं।
  • आधुनिक विद्वान मानते हैं कि संस्कृत भाषा पाँच हज़ार सालों से चलती आ रहा है। भारतवर्ष में यह आर्यभाषा सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण, व्यापक और संपन्न है। इसके द्वारा भारत की उत्कृष्टतम प्रतिभाएँ, अमूल्य चिंतन, मनन, विवेक, रचनात्मक, सृजन और वैचारिक ज्ञान की अभिव्यक्ति हुई है।
  • आज भी सभी क्षेत्रों में इस भाषा के द्वारा पुस्तक संरचना की धारा अबाध रूप से बह रही है। आज भी यह भाषा (अत्यंत सीमित क्षेत्र में ही सही) बोली, पढ़ी और लिखी जाती है। इसमें व्याख्यान होते हैं और भारत के विभिन्न प्रादेशिक भाषा भाषी योग्यजन इसका परस्पर वार्तालाप में भी प्रयोग करते हैं। हिंदुओं के सांस्कारिक कार्यों में आज भी यह प्रयुक्त होती है। इसी कारण ग्रीक और लैटिन आदि प्राचीन मृत भाषाओं (डेड लैंग्वेजेज़) से संस्कृत की स्थिति सर्वथा भिन्न है। यह अमर भाषा है।
संस्कृत का अर्थ है, संस्कार की हुई भाषा। इसकी गणना संसार की प्राचीनतम ज्ञात भाषाओं में होती है। संस्कृत को देववाणी भी कहते हैं।
  • ऋग्वेद संसार का सबसे प्राचीन ग्रंथ है। ऋग्वेद के मन्त्रों का विषय सामान्यत: यज्ञों में की जाने वाली देवताओं की स्तुति है और ये मन्त्र गीतात्मक काव्य हैं।
  • यजुर्वेद की शुक्ल और कृष्ण दो शाखाएं हैं। इसमें कर्मकांड के कुछ प्रमुख पद्यों का और कुछ गद्य का संग्रह है। ईशोपनिषद इसी का अंतिम भाग है।
  • सामवेद में, जिसका संकलन यज्ञों में वीणा आदि के साथ गाने के लिए किया गया है, 75 मौलिक मन्त्रों को छोड़कर शेष ऋग्वेद के मन्त्रों का ही संकलन है।
  • अथर्ववेद की भी शौनक और पैप्पलाद नामक दो शाखाएं हैं। इस वेद में जादू-टोना, वशीकरण आदि विषयक मन्त्रों के साथ-साथ राष्ट्रप्रेम के सूक्त भी मिलते हैं। यह प्रथम तीन वेदों से भिन्न तथा गृह्य और सामाजिक कार्यकलापों से संबंधित है।
  • संस्कृत भाषा के दो रूप माने जाते हैं वैदिक या छांदस और लौकिक। चार वेद संहिताओं की भाषा ही वैदिक या छांदस कहलाती है। इसके बाद के ग्रंथों को लौकिक कहा गया है।
ब्राह्मण ग्रंथों में यज्ञों के कर्मकांड का विवेचन है। प्रत्येक वेद के अलग-अलग ब्राह्मण हैं। ऋग्वेद, के ब्राह्मण 'ऐतरेय' और 'कौषीतकी' यजुर्वेद का 'शतपथ और सामवेद का 'पंचविंश' है। ब्राह्मण ग्रंथों के बाद आख्यकों और उपनिषदों का क्रम आता हैं उपनिषदों का कर्मकांड से कोई संबंध नहीं है। ये ईश्वर, प्रकृति और उनके पारस्परिक संबंध की ब्राह्म विद्या की विवेचना करते हैं। उपनिषदों की कुल ज्ञात संख्या 18 है जिनमें ये दस प्रमुख हैं- ईश, बृहदारण्यक, ऐतरेय, कौषीतकी, केन, छांद्योग्य, तैत्तरीय, कठ, मंड्रक, और मांडूक्य। ये उपनिषद प्राचीन हैं। कुछ की रचना बहुत बाद तक होती रही है, जैसे 'अल्लोपनिषद' जो स्पष्टत: मुसलमानों के आगमन के बाद लिखा गया।

पौराणिक महत्त्व

हिन्दू समाज वेदों को अनादि और अपौरुषेय मानता आया है। पर आधुनिक विद्वानों के एक वर्ग ने वेदों का रचना काल 6000 ई.पू. से लेकर 2500 ई.पू. तक तथा ब्राह्मण ग्रंथों और उपनिषदों का समय इसके बाद का निर्धारित किया है। संस्कृत साहित्य में वैदिक वांड्मय के बाद व्यास रचित महाभारत और वाल्मीकि रचित रामायण प्रसिद्ध ग्रंथ है। महाभारत को उसके विस्तृतज्ञान-भंडार को देखते हुए पांचवां वेद भी कहा जाता है। विषय की दृष्टि से रामायण की कथा पहले की (त्रेता युग) की है और महाभारत की बाद (द्वापर युग) की। इतिहासकारों के मतानुसार, महाभारत का रचना-काल रामायण से पहले का है। 18 पर्वों का यह ग्रंथ ई.पू. चौथी-तीसरी शताब्दी तक अपना मूल रूप ले चुका था। महाभारत से आख्यानों की परंपरा आरंभ होती है और रामायण से महाकाव्य और खंड काव्यों की; जिस परंपरा में कालिदास जैसे कवि हुए।
  • पुराणों का अपना महत्त्व है। ये सृष्टि, लय, मन्वंतरों, प्राचीन ऋषि-मुनियों तथा राजवंशों के चरित्र पर प्रकाश डालते हैं। इनका रचनाकाल दूसरी-तीसरी शताब्दी से आठवीं-नंवी शताब्दी तक माना जाता है। इनका महत्त्व तत्कालीन भारत की सभ्यता और संस्कृति के अध्ययन की दृष्टि से विशेष है। कुल पुराण 18 हैं-विष्णुपद्मब्रह्मशिवभागवतनारद,मार्कण्डेयअग्निब्रह्मवैवर्तलिंगवराहस्कंदवामनकूर्ममत्स्यगरुड़ब्रह्मांड और भविष्य
  • स्मृतियां, जिनमें 'मनुस्मृति', 'याज्ञवल्क्य स्मृति', 'नारद स्मृति' और 'पाराशर स्मृति' मुख्य हैं, दूसरी-तीसरी शताब्दी की रचनाएं मानी जाती हे। 'अमरकोश' की रचना चौथी –पांचवीं ईस्वी में हुई। कौटिल्य का 'अर्थशास्त्र' अपने विषय का एकमात्र ग्रंथ है जिसमें राज्य प्रबंध, राजनीति , सामाजिक , आर्थिक संगठन की सांगोपांग विवेचना की गई है।
  • संस्कृत, तमिल को छोड़कर सभी भारतीय भाषाओं की माता है । इनकी अधिकांश शब्दावली या तो संस्कृत से ली गयी है या संस्कृत से प्रभावित है । पूरे भारत में संस्कृत के अध्ययन-अध्यापन से भारतीय भाषाओं में अधिकाधिक एकरूपता आयेगी जिससे भारतीय एकता बलवती होगी । इसे पुनः प्रचलित भाषा भी बनाया जा सकता है ।
  • हिन्दूबौद्धजैन आदि धर्मों के प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत में ही हैं ।
  • हिन्दुओं के सभी पूजा-पाठ और धार्मिक संस्कार की भाषा संस्कृत ही है ।
  • हिन्दुओं, बौद्धों और जैनों के नाम भी संस्कृत भाषा पर आधारित होते हैं ।
  • भारतीय भाषाओं की तकनीकी शब्दावली भी संस्कृत से ही व्युत्पन्न की जाती है ।
  • संस्कृत, भारत को एकता के सूत्र में बाँधती है ।
  • संस्कृत का प्राचीन साहित्य अत्यधिक प्राचीन, विशाल और विविधता से पूर्ण है । इसमें अध्यात्म, दर्शन, ज्ञान-विज्ञान, और साहित्य की भरपूर सामग्री है । इसके अध्ययन से ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति को बढावा मिलेगा । संस्कृत साहित्य विविध विषयों का भंडार है। इसका प्रभाव सम्पूर्ण विश्व के चिंतन पर पड़ा है। भारत की संस्कृति का यह एकमात्र सुदृढ़ आधार है। भारत की लगभग सभी भाषाएं अपने शब्द-भंडार के लिए आज भी संस्कृत पर आश्रित हैं। संस्कृत को कम्प्यूटर के लिये सबसे उपयुक्त भाषा माना जाता है।
 

मूलं भुजङ्गैः शिखरं प्लवङ्गैः। शाखा विहङ्गैः कुसुमानि भृङ्गैः। आसेव्यते दुष्टजनैः समस्तैर् न चन्दनं मुञ्चति शीतलत्वम्।।

मूलं भुजङ्गैः शिखरं प्लवङ्गैः।
शाखा विहङ्गैः कुसुमानि भृङ्गैः।
आसेव्यते दुष्टजनैः समस्तैर्
न चन्दनं मुञ्चति शीतलत्वम्।।
चन्दन के मूल में सर्प रहते हैं,
शिखर पर बन्दर रहते हैं,
शाखाओं पर पक्षी तथा पुष्पों
पर भ्रमर रहते हैं, इस प्रकार वह
चन्दन समस्त दुष्ट प्राणियों से
सेवित होता है, परंतु फिर भी
अपनी शीतलता को नहीं छोड़ता।